Poetry by Vikram Saxena
A very Loving Person
Ph: 09711144798 / 011-23315717
1) मैं कह न सका ,
शब्दों को माला में पिरो न सका
और वो पढ़ न
सके मेरे निःशब्द शब्दों की कविता
2) रूहानी चेहरा तेरा कातिल भी है
रास्ता-ऐ मक्का भी ये
रास्ता-ऐ महखाना भी ये
तेरी निगाहों से कत्ल जो हो
खुदा को तो मैं पाऊँ
3) राहें हैं राही जुदा जुदा
मुश्किलें भी हैं जुदा जुदा
मंजिल सबकी एक, ओ मेरे खुदा
मंजिल पहुँच नयी मंजिल दिखे
ऐसा तेरा नखलिस्तान
4) सोचा था वक़्त के थपेड़ों से भी मैं न बदल पाउँगा,
तेरी यादों के साये से मैं न उबर पाउँगा ||
मगर अब यह आलम है
ज़िन्दगी में धूप है खिलीं
जबसे मिली है मुझे तू अनारकली ||
5) ऐ हकीम -ऐ लुक्मान,
नासमझ क्यूँ नहीं है तुझे इसका गुमा
मेरे नासूर-ऐ-इश्क की है तू ही दवा ||
6) तू ही समझा इस जख्मी जिगर को,
भला रूहें जवाब देती है क्या ?
क़त्ल करके पूछते हैं वो,
मंज़र
कैसा था, खंज़र किसका था ?
7) मौला मुझे माफ़
करना, ना पीर की सुनूँ ना पंडित की
में तो सुनू महखाने की, लाल रंग के प्याले की
जश्ने जिंदगी ना जी सकूं, इनकी सुनूँ तो मै ना पी सकूं
जिंदगी जो जियूं इस बार, तू ना दे सके बार बार
8) क्यूँ पूछते हो मेरी दीवानगी का सबब जमाने से
नज़रे तो मिली पर
क्यूँ न तुम अपने अस्क को पहचान पाई
यूँ ही सोचते रहे मुझको हरजाई
9) जान- ए-- चमन और
दिल ए- दिलदार हो
जान ए बहार और गुल ए गुलज़ार हो
जन्नत ए हूर हो, वो भी मेरे पास
ये भी, वो भी हो, ऐसी भी, वैसी भी हो
यहाँ भी, वहां भी हो, घर में भी हो , बाहर भी हो
दौलत भी औ शोहरत भी मेरे पास हो
ऐ दीवाने दिल.....
जन्नत की चाह इस ज़मी पे लिए
तू परछाई के पीछे ना भाग
10) तुझे पाने की खवाइश
में
जब हारा मैं सब कुछ
पूछे ये पुरजोश ज़हन, क्यों कहते
हैं फिर ----
जो जीता वोही सिकन्दर
11) मत आ मेरे करीब, ओ मेरे रकीब
हवा न दे इन अरमानो को, क्यों तुझे नहीं इसका गुमा
राख की परतों के तले, एक शोला अभी बाकी है
12) तू तिफ्ल तो नहीं,
फिर डरता है क्यूँ गिरने से ऐ सवार ..
तुझे इसका इल्म क्यूँ नहीं, कि
जो गिर के उठे वो ही है शेह्सवार
13) कैसे न इज़हारे इश्क कबूल कर पाओगे
कि मेरे इश्क मै न डूब पाओगे
यकीनन मेरी खुशी है तेरी जीत मे
पर कैसे तुम बहते हुए पानी मे मेड बना पाओगे
14) दिया जो तोहफ़ा तूने लुफ़्ते इन्त्ज़ार का
आदत सी हो चली है जब दिले बेकरार को
डर है कि कन्ही तू आ न जाये
15) ना हो
जालिम इन्तिहा तेरे इम्तिहान की
तेरे इम्तिहान को मेरी खाक भी राज़ी है
16) जिन्दगी
यून्ही गुजर जायेगी फ़रियाद करते करते
कभी उनसे कि कुछ Waqt ठह्र्रजा
कभी Waqt से कि तू ही ठह्र्रजा
17) लानत है
तुझ पर ऐ नामुराद मरदूद
जो पिन्ज्रर बन्द हो जमाने से डर के
ऐ दिल जो तू जशने जिन्दगी के लिये ना धडःके
18) आना जाना तेरा मोआइअन* इस बिसात मे
फिर कयो खेले खेल तू गमगीन
होजा तू रन्गीन इस बिसात मै
कह्ता है राजी जो ना है एक काज़ी
तुम भी चले चलो यून्ही जब तक चली चले
*मोआइअन = Predetermined
19) ओ चान्द आज रात तू पूरे निखार से आना
आपनी चान्द्न्नी से मेरे मह्बूब को रिझाना
इस विरह कि रात , जीने के लिये
अगर तू नही, तो तेर अस्क ही सही
मगर ओ चान्द तू जल्दी छूप ना जाना
20) नज़रो से नज़रो का नशा न नाप पाये तुम
मेरे ज़ख्मी ज़िगर को न पहचान पाये तुम
21) गुस्ताख
निगाहो की गुस्ताखी को कभी तो देख,
कभी अपनी मस्त नजरो से, मेरी तन्हाई को तो देख .
22)
ऐ दिल- ऐ -नादान तू क्यों है हैरान और परेशान
अंधियारे की अनकही को तू सुन
कि सुबह अभी बाकी है
23)
बेवजह कट न जाये जिन्दगी यूँ ही
तुझे ढूंढते ढूंढते जीने की वजह ढूंढते ढूंढते
24)
मैं क्या हूँ और तू क्या है, ये अंदाज़े मोहब्बत क्या है
जान ले ओ जानेजाना, ये पल नहीं लौट के आना,
शमा के बुझ जाने पर, चाँद के उस पार,
मैं नहीं, तू नहीं और कुछ भी नहीं
25)
तू है सही कि मेरा दिल है सही
तेरे इंतजार की रहगुज़र में जो गुज़र जाऊं, तो वो भी सही
26)
मौला मुझे माफ़ करना
जो मुझे न है इस का मलाल, कि न देखा तेरा ये जलवा औ जलाल
आखिर क्यों तूने बनाया ये गुल
और मुझे उस गुल का गुलाम
27)
मैं बे दिल ही सही
जीता तो हूँ तेरी आस मैं
लौटाया तूने गर कहीं मेरा दिल
तेरी आस तो रहेगी पर ये साँस न रहेगी
28)
रण का बाजा बजे अनवरत,
महाभारत है इधर उधर | |
रण है बहार, रण है भीतर,
चौतरफा रण ही रण है,
हो अंत इस द्वन्द का | |
जब तू जीते अंतर्द्वंद,
होगा हर महाभारत का विध्वंस
और गले मिलेंगे कृष्ण और कंस | |
अंतर्द्वंद = The fight within
29)
कातिल मेरे, खंजर ना तू दूर से चला
मेरे पास तो आ, नजरे तो मिला
30)
तेरे दर पर दस्तक दी जो मैने तेरे दीदार के खातिर
तेरा नाम दिखा, तेरी शोहरत दिखी,
तेरी
दौलत दिखी और तेरा रुतबा दिखा,
बेदार तो मै था पर न दिखा बशर और न ही बशरइयत
बेदार
= awake, जगा हुआ, बसेरा = home
बशर = human, इंसान
बशरइयत = इंसानियत
31)
मै हूँ, तू है और ये पल है , जो निश्छल है
आ इस में खोजा तू , इसका हो जा तू
क्यों है तू उदास , करे क्यूँ तू कल की आस
किसने देखा है यहाँ कल ,
जान ले ओ अनजान , ओ नादान
कैसे करेगा कोई ताउम्र साथ का वादा
यहाँ तो लोग जनाजे में भी कन्धा बदलते रहते है
32)
राहें हैं राही जुदा जुदा
मुश्किलें भी हैं जुदा जुदा
मंजिल सबकी एक, ओ मेरे खुदा
मंजिल पहुँच नयी मंजिल दिखे
ऐसा तेरा नखलिस्तान
नखलिस्तान = mirage
33)
तू तिफ्ल तो नहीं,
फिर डरता है क्यूँ गिरने से ऐ सवार ..
तुझे इसका इल्म क्यूँ नहीं, कि
जो गिर के उठे वो ही है शेह्सवार
34) देखा जो उसे
ये ज़मी रुक गई, आस्मां रुक गया
रुकते रुकाते हुआ ये कि
मेरे दिल की साँस भी रुकी
35)
शब् शुक्रिया जो तू माही को साथ लाई
पर कयूं तू मुख़्तसर सी आई
और सुबह का दामन ना छोड़ पाई
तेरे जाने से दिल अब भी धडकता तो है
मगर खामोश है
भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .
देश के युग तरुण कहाँ हो ?
नव सृष्टि के सृजक कहाँ हो ?
विजय पथ के धनी कहाँ हो ?
रथ प्रगति का सजा सारथी .
भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .
शौर्य सूर्य सा शाश्वत रहे,
धार प्रीत बन गंगा बहे,
जन्म ले जो तुझे माँ कहे,
देव - भू पुण्य है भारती .
भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .
राष्ट्र ध्वज सदा ऊँचा रहे,
चरणों में शीश झुका रहे,
दुश्मन यहाँ न पल भर रहे,
मिल के सब गायें आरती .
भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .
आस्था भक्ति वीरता रहे,
प्रेम, त्याग, मान, दया रहे,
मन में बस मानवता रहे,
माँ अपने पुत्र निहारती .
भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .
द्रोह का कोई न स्वर रहे,
हिंसा से अब न रक्त बहे,
प्रहरी बन हम तत्पर रहें,
सैनिकों को माँ संवारती .
भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .
कवि कुलवंत सिंह
सौंदर्य भरा अनंत अथाह,
इस सागर की कोई न थाह .
कैसे नापूँ इसकी गहनता,
अंतस बहता अनंत प्रवाह .
ज्योति प्रभा से उर आप्लावित,
प्राण सहज करुणा से द्रावित .
अंतर्मन की गहराई में,
प्रेम जड़ें पल्लव विस्तारित
सरल हृदय संपूर्ण समर्पित,
कण- कण अंतस करती अर्पित .
रोम - रोम में भर चेतनता,
किया समर्पण, होती दर्पित .
प्रणय बोध की मधुरिम गरिमा,
लहराती कोंपल हरीतिमा .
लज्जा की बहती धाराएँ,
रग-रग में भर सृस्टि अरुणिमा .
जीने की वह राह दिखाती,
वेदन को सहना सिखलाती .
अखिल जगत की लेकर पीड़ा,
प्रीत मधुर हर घड़ी लुटाती .
प्रीतम सुख ही तृप्ति आधार,
उसी में ढ़ूँढ़े जग का प्यार .
पुलक-पुलक कर हंसती मादक,
प्रेम पाये असीम विस्तार .
आँखों में भर चंचल बचपन,
सरल सहज देती अपनापन .
राग में होकर भाव विभोर,
सर्वस्व लुटाती तन-मन-धन .
अंतस कितना ही हो भारी,
व्यथा मधुर कर देती नारी .
अपना सारा दर्द भुलाकर
हर लेती वह पीड़ा सारी .
कवि कुलवंत सिंह
Kavi Kulwant Singh
--
मै किससे खेलूं होली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
रंग हैं चोखे पास
पास नही हमजोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
देवर ने लगाया गुलाल,
मै बन गई भोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
ननद ने मारी पिचकारी,
भीगी मेरी चोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
जेठानी ने पिलाई भांग,
कभी हंसी कभी रो दी रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
सास नही थी कुछ कम,
की उसने खूब ठिठोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
देवरानी ने की जो चुहल
अंगिया मेरी खोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
बेसुध हो मै भंग में
नन्दोई को पी बोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
कवि कुलवंत सिंह
काले धन एवं नकली नोटों से छुटकारा - भ्रष्टाचार पूर्णत: खत्म
प्राय: सभी देशों की सरकारों का एक रोना साझा है. और वो भी अति भयंकर रोना! देश की अर्थ व्यवस्था में कला धन. यह काला धन बहुत से देशों को, बहुत सी सरकारों को बहुत रुलाता है. और बुद्धिजीवी वर्ग को अत्यंत चिंतित करता है. अर्थशास्त्रियों की नाक में दम करके रखता है. रोज नए नए सुझाव दिए जाते हैं, विचार किए जाते हैं कि किस तरह इस काले धन पर रोक लगाई जाए. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट तो छापों में विश्वास रखता है, जहाँ कहीं सुंघनी मिली नहीं कि पहुँच गए दस्ता लेकर. अजी! काले धन की बात तो छोड़िए! नोटों को लेकर इससे भी बड़ी समस्या का सामना कई देशों को करना पड़ता है, और वो है नकली नोटों की समस्या. दूसरे देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करना हो याँ बेहाल करना हो, प्रिंटिंग प्रेस में दूसरे देश के नोट हूबहू छापिए और पार्सल कर दीजिए उस देश में. बस फ़िर क्या है - बिना पैसों के तमाशा देखिए उस देश का. अब तो उस देश की पुलिस भी परेशान. गुप्तचर संस्थाएं भी परेशान और सरकार भी परेशान! नकली नोट कहां कहाँ से ढ़ूंढ़े और किस जतन से? बड़ी मुश्किल में सरकार.
बचपन से छ्लाँग लगाकर जब हमने भी होश सँभाला तो आए दिन काले धन की बातें पढ़कर, सुनकर, और नकली नोटों की बातें अखबारों में पढ़कर और टी.वी. में देख सुनकर, सरकारों की, अर्थशास्त्रियों की चिंता देख सुनकर हमें भी चिंता सताने लगी. लेकिन हमारे हाथ में तो कुछ है नही जो कुछ कर सकें. बस कुछ बुद्धिजीवियों के बीच बैठकर चाय-पानी या खाने के समय लोगों से चर्चा कर ली. अपनी बात कह दी और दूसरे की सुन ली और हो गई अपने कर्तव्य की इतिश्री. लेकिन नहीं यार! अपने में देश-भक्ति का कुछ बडा़ ही कीडा़ है. सो लग गए चिंता में. भले सरकार को हो या ना हो, देशभक्त को ज़रूर चिंता करनी चाहिए और वो भी जरूरत से ज़्यादा. भले अर्थशास्त्री बेफ़िकर हो गए हों! लेकिन नहीं, अपन को तो देश की चिंता है, काले धन की भी और नकली नोटों की भी. लेकिन किया तो किया क्या जाए. दिन रात इसी चिंता में रहते. चिंता में रहते रहते रात में स्वप्न भी इसी विषय पर आने लगे. कल तो हद ही हो गई. एक ऐसा स्वप्न आया कि क्या बताऊँ! पूरे विश्व से कालेधन और नकली नोटों की समस्या जैसे जड़ से ही खत्म हो गई और साथ में भ्रष्टाचार भी समाप्त. आप आश्चर्य करेंगे ऐसा कैसे? आइये विस्तार से बताता हूँ क्या स्वप्न देखा मैने -
मैने देखा कि विश्व की सभी सरकारें इस विषय पर एकमत हो गईं हैं. और सबने मिलकर एक बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय लिया है और निर्णय यह कि सभी सरकारें ’करेंसी’ को - सभी छोटे, बड़े नोटों को, सभी पैसों को पूरी तरह से अपने सभी देशवासियों / नागरिकों से वापिस लेकर पूरी तरह से नष्ट कर देंगी. और किसी प्रकार के कोई नोट यां करेंसी छापने की भी बिलकुल जरूरत ही नही है. जिसने जितनी भी रकम सरकार को सौंपी है उसके बदले - एक ऐसा सरकारी मनी कार्ड उनको दिया जायेगा जिसमें उनकी रकम अंकित कर दी जायेगी. सभी नागरिकों को इस मनी कार्ड के साथ साथ एक ऐसा ’डिस्प्ले’ भी दिया जायेगा जिसमें कोई भी जब चाहे अपनी उपलब्ध रकम (धनराशि) देख सकता है एवं अपनी रकम का जितना हिस्सा जिसको चाहे ट्रांसफर कर सकता है. भविष्य में सभी नागरिकों का भले वह व्यवसायी हो, नौकर हो, कर्मचारी हो, अधिकारी हो, मजदूर हो, सर्विस करता हो, बिल्डर हो, कांट्रैक्टर हो, कारीगर हो, सब्जी बेचने वाल हो, माली हो, धोबी हो, दुकानदार हो, यां जो कुछ भी करता हो, यां भले ही बेरोजगार हो, सभी प्रकार का लेन देन उस एक कार्ड के द्वारा ही होगा. पैसों का, नोटों का लेन देन बिलकुल बंद! नोट बाजार में हैं ही नहीं! बस सबके पास एक सरकारी मनी कार्ड!!
भारत सरकार जो अमूनान चुप्पी साध लेती है यां जो कई काम भगवान के भरोसे छोड़ देती है यां जो सबसे बाद में किसी भी चीज को, नियम को यां कानून को कार्यान्वित करती है. लेकिन, इस मामले में तो भारत सरकार ने इतनी मुस्तैदी दिखाई कि पूछिये मत! पता नही कि काले धन से सरकार खूब ज्यादा ही परेशान थी, यां नकली नोटों के भयंकर दैत्याकार खौफ से यां फिर उन राज्नीतिज्ञों से जिन्होंने स्विस बैंकों में अरबों करोड़ रुपये काले धन के रूप में जमा कर रखे हैं. खैर बात जो भी हो, भारत सरकार ने तुरंत आनन फानन में कैबिनेट की मीटिंग की! निर्णय लिया. और संसद में पेश कर दिया! और पास भी करा लिया. कानून बना दिया. निलेकर्णी को बुलाया और निर्देश किया कि जो पहचान पत्र आप देश के सभी नागरिकों को बनाकर देने वाले हो - जिसमें व्यक्तिगत पहचान होगी, घर का, आफिस का पता होगा, फोटो होगी, बर्थ डेट, ब्लडग्रुप एवं अन्य सभी जरूरी जानकारी होगी उसी में यह सरकारी मनी कार्ड भी हो. अब यह नागरिकों के लिये सरकारी पहचान पत्र ही नही बल्कि ’सरकारी पहचान पत्र कम मनी कार्ड’ होना चाहिये. सभी की धनराशि सिर्फ अंकों में (यां रुपयों में) दिखाई जायेगी और देश भर में सभी ट्रांजैक्शन और लेन देन - चाहे वह एक रुपये का हो यां करोड़ों का! प्रत्येक नागरिक द्वारा इसी के द्वारा किया जायेगा. हर एक नागरिक को इस कार्ड के साथ साथ एक डिस्प्ले भी दिया जायेगा. जिसमें वह जब चाहे अपनी जमा धन राशि देख सकता है और इसके द्वारा जमा धनराशि में से जिसके नाम पर, जब चाहे, जितनी भी चाहे धनराशि ट्रांसफर कर सकता है. निलेकर्णी जी तो अपनी टीम के साथ पहले ही तैयार बैठे थे. यह एजेंडा भी उसमें जोड़ दिया गया. अगले तीन वर्षों में यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से तैयार हो गया. सरकार ने नोटिस निकाल दिये. सभी अखबारों में, टी वी चैनलों में, हर जगह. लोग अपनी सारी धनराशि/ कैश अपने बैंक अकाउंट में जमा कर दें - भले ही देश भर में आपके कितने ही अकाउंट हों सभी की धनराशि जोड़कर उस सरकारी क्रेडिट कार्ड में इंगित कर दी जायेगी. तीन महीनों के अंदर देश भर में यह व्यवस्था लागू हो गई. सभी को ’सरकारी पहचान पत्र कम मनी कार्ड’ दे दिये गये.
सुबह धोबी मेरे पास आया और मैने क्रेडिट कार्ड से डिस्प्ले में डालकर दस रुपये उसके नाम पर ट्रांसफर कर दिये. थोड़ी देर में दूधवाला आया मैने अपने कार्ड से उसके कार्ड में 24 रुपये ट्रांसफर कर दिये. मेरी पत्नी हाउसवाइफ (ग्रहणी) है. उसने कहा मार्केट जाना है कुछ पैसे दो! मैने अपने कार्ड से उसके कार्ड में 2 हजार रुपये ट्रांसफर कर दिये. मार्केट जाकर उसने सब्जी खरीदी और सब्जी वाले के कार्ड में 240 रुपये ट्रांसफर कर दिये. कुछ मिठाइयां हलवाई के यहां से खरीदीं और 430 रुपये उस दुकान वाले के कार्ड में ट्रांसफर कर दिये. मार्केट में उसने कुछ कपड़े बच्चों के लिये खरीदे और 615 रुपये उसने दुकान के कार्ड में ट्रांसफर कर दिये. ’किराने’ की दुकान से उसने कुछ राशन खरीदा और 315 रुपये उसने उस राशन वाली दुकान के कार्ड में ट्रांसफर कर दिये. कहीं कोई कैश / नकदी का लेन देन नही हुआ. जरूरत ही नही पड़ी. कैश में लेने देन हो ही नही सकता था, अब किसी के हाथ में कोई कैश, रुपया, नोट यां पैसा हो, तब ना! सब तो सरकार ने लेकर नष्ट कर दिये. करेंसी की प्रिंटिंग बिलकुल बंद जो कर दी. मेरा दस वर्ष का बेटा मेरे पास आया और कुछ पैसे मांगे मैने अपने कार्ड से 100 रुपये उसके कार्ड में ट्रांसफर कर दिये.
महीने के अंत में मेरी गाड़ी धोने वाला आया, बर्तन मांजने वाली बाई आयी, घर का काम करने वाली बाई आयी. सबके कार्ड में मैने अपने कार्ड से जरूरत के हिसाब से धनराशि ट्रांसफर कर दी. महीने की शुरुआत होते ही मेरे कार्ड में अपने बैंक में दिये निर्देश के अनुसार मेरी तनख्वाह (सेलरी) में से आवश्यक धनराशि मेरे कार्ड में ट्रांसफर हो गई. बैंक में जाकर पैसे निकलवाने की जरुरत ही नही पड़ी. सारे कार्य यह पहचान पत्र कम मनी कार्ड कर रहा है. और आप चाहें तो भी कैश आप निकलवा ही नही सकते, धनराशि को सिर्फ ट्रांसफर करवा सकते हैं क्योंकि बैंक वालों के पास भी रुपये, नोट हैं ही नहीं. उनके पास भी केवल अंकों में रुपये हैं. आप जितने चाहें फिक्स्ड डिपोजिट करवायें जितने चाहें कार्ड में ट्रांसफर करवायें. हर व्यक्ति को एक ही कार्ड. कार्ड यां डिस्प्ले में कोई तकनीकी खराबी आई तो बस एक फोन किया और आपको दूसरा कार्ड यां डिस्प्ले मुफ्त में दे दिया जायेया.
मुझे घर खरीदना था. बिल्डर से देख कर घर पसंद किया 20 लाख का था. मेरे पास बैंक में जमा धनराशि 5 लाख थी 15 लाख बैंक से लोन लेना है. सारे काम बस उसी पुराने तरी के से हुये, पेपर वगैरह तैयार हुये और बैंक से लोन मिल गया. बिल्डर के कार्ड में 15 लाख बैंक से और मेरे कार्ड/अकांउट से 5 लाख ट्रांसफर हो गये. स्टैंप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन और अन्य ट्रांसफर चार्जेस सभी कुछ कार्ड से कार्ड के द्वारा ट्रांसफर हुआ. कहीं कोई बलैक मनी न उपजी, न बिखरी, न फैली. अरे यह क्या मुझे तो कोई अंडर टेबल, यां चाय पानी के लिये भी कहीं कुछ पैसा देना नही पड़ा. न ही किसी ने कुछ मांगा. अरे कोई मांगे तो भला कैसे? कैश तो है नही किसी के पास. कार्ड में ट्रांसफर करवायेगा तो मरेगा. संभव ही नही है. क्या बात है! लगता है भ्रष्टाचार भी खत्म होने को है.
प्राइवेट एवं सरकारी कंपनियों एवं उद्यमों को भी इसी प्रकार कार्ड जारी किये गये. जो काम जैसा चल रहा था, वैसा ही चलने दिया गया. बस सभी ट्रांसैक्शन (पैसे का लेन देन) एक कार्ड से दूसरे कार्ड पर होने लगा. शाम को आफिस से बाहर आया तो देखा कांट्रैक्टर मजदूरों को उनकी दिहाड़ी का पैसा उनके कार्ड में ट्रांसफर कर रहा था और बिना कम किये यां गलती के. अरे एक गलती भी भारी पड़ सकती है.
मुझे विदेश जाना था, पासपोर्ट वीजा से लेकर धन परिवर्तन (मनी एक्स्चेंज) सभी कुछ कार्ड में धनराशि के ट्रांसफर द्वारा ही किया गया. विदेश जाने पर वहां की जितनी करेंसी मुझे चाहिये थी अपने कार्ड पर ही मुझे परिवर्तित कर दी गई. वहां पर भी हर जगह बस कार्ड पर ही ट्रांसफर हो रहा था. कहीं कोई परेशानी नही हुई.
किसानों को उनके उत्पाद की पूरी धनराशि बिना किसी कटौती के मिलनी शुरू हो गई. किसान भाई बहुत खुश हुये. सरकारी आफिसों से भी लोग बहुत खुश हो गये, कहीं कोई अपना हिस्सा ही नही मांग रहा. मांगे तो कार्ड में ट्रांसफर करवाना पड़े और करवाये तो तुरंत रिकार्ड में आ जाये, पकड़ा जाये. संभव ही नही है.
सारे काले धन की समस्या! सारे नकली नोटों की समस्या, सब की सब एक झटके में तो ख्त्म हुई हीं. भ्रष्टाचार का भी नामों निशान न रहा. मैने चैन की सांस ली. चलो इस देश-भक्त की चिंता तो खत्म हुई. रुपयों से संबंधित सारी समस्याएं किस तरह एक झटके में हमेशा के लिये समाप्त हो गयीं. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की सरदर्दी तो बिलकुल ही खत्म हो गई. सारे ट्रांसैक्शन वह बहुत ही आसानी से ट्रेस कर पा रहे थे. यहां तक कि उनके अपने लोग गऊ बन गये थे. पुलिस की हजारों हजार दिक्कतें एक झटके में सुलझ गई थीं. हर केस को अब वह आसानी से सुलझा पा रहे थे. हर ट्रांसैक्शन अब उनकी नजर में था. अपराधियों को पकड़ना बहुत ही सरल हो गया था. अपराध अपने आप कम से कम होते गये और न के बराबर रह गये. पुलिस के अपने लोग किसी प्रकार की गलत ट्रांसैक्शन कर ही नही सकते थे, कर ही नही पा रहे थे. सबके सब दूध के धुले हो गये. यां कहिये होना पड़ा. आदमी खुद साफ हो तो उसे लगता है सारी दुनिया साफ होनी चाहिये. जब वह खुद कुछ गलत नही कर सकते थे, तो साफ हो गये, जब खुद साफ हो गये तो समाज को साफ करने लग गये. बहुत जल्द परिणाम सामने थे. ट्रैफिक पुलिस वाले अब अपनी जेबें गरम करने के बजाय सिर्फ कानून यां सरकार की जेब ही गरम कर सकते थे.
देश में भ्रष्टाचार पूरी तरह से बंद हो चुका था. न्याय व्यवस्था जोकि पूरी तरह से चरमरा गई थी! पुनर्जीवित हो उठी. सभी अधिकारी, पुलिस, नेता, जज, सरकारी कर्मचारी, सबके अकांउट्स क्रिस्टल क्लियर हो गये. रह गई तो बस केवल सुशासन व्यवस्था. यह तो सच ही अपने आप में राम राज्य हो गया. गांधी का सपना सच हो गया.
मैं बहुत खुश हुआ. हंसते हंसते नींद खुली! अखबार में नोटिस ढ़ूंढ़ने लगा. कहीं नहीं मिला. फिर याद आया कि अरे यह तो तीन साल बाद होने वाला है. तो आइये, हम सभी मिल कर तीन साल बाद भारत सरकार द्वारा आने वाले इस नोटिस का इंतजार करें.
कवि कुलवंत सिंह
More Recent Articles
|